हिरण्याक्ष को युध्द दान देना।
श्रीमद भागवद पुराण * सत्रहवाँ अध्याय * [स्कंध३] हिरण्यकश्यप असुर द्वारा दिग्विजय करना। दो-दिति उदर में आपके असुर जन्म लिया आय । सत्रहवें अध्याय में कही कथा सुनाय ।। ऋषि मैत्रेय जी बोले-हे विदुर जी ! इस प्रकार ब्रह्मा जी ने जब देवताओं को उनके भय का कारण सुनाया तो सब की संका दूर हो गई और सभी देवता अपने-अपने स्थानों को चले गये। इधर जब दिति ने गर्भधारण कर लिया तो वह पुत्रों के प्रति शंका रखने के कारण निरंतर सौ वर्ष तक गर्भ को धारण किये रही। पश्चात सौ वर्ष के उसने दोनों पुत्रों को एक साथ जन्म दिया। जिस समय इन दोनों का जन्म हुआ उस समय आकाश, अतंरिक्ष तथा सभी लोकों में अनेक प्रकार अत्यंत दुख देने वाले उत्पात हुए । पर्वतों सहित भूकंप तथा वज्रपात होने लगे, दुख समय जान पुच्छल तारे उदय होने लगे, पवन इतने वेग से भयंकर रूप धारण कर चलने लगी कि जिसके कारण वृक्ष उखड़ कर धराशाई होने लगे। दिन में अंधकार छागया तथा बादल घोर गर्जन करने लगे और भयानक रूप से बिजली कड़क कर चमकने लगी। समुद्र में भयानक ज्वार आने लगे। नवी, तालाब, बावड़ी, कूप आदि के जल सूख गये। बिना योग के ही ग्रहण होने लगा तथा गीदड़ अमंगलकारी बोल