वाराह अवतार।श्रीमद भागवदपुराण* तेरहवाँ अध्याय * [स्कंध३]

 श्रीमद भागवदपुराण* तेरहवाँ अध्याय * [स्कंध३]

(भगवान का बाराह अवतार वर्णन)

दो० वृम्हा जी की नासिका, भये वारह अवतार ।

तेरहवें अध्याय में वरणो कथा उचार ।।

श्री शुकदेवजी बोले हे परीक्षत ! मैत्रेयजी ने विदुरजी से इस प्रकार कहा 


जब स्वयंभुव मनु उत्पन्न हुये और साथ ही शतरूपा नाम पत्नी भी हुई तो वृम्हाजी ने प्रजा उत्पन्न करने की आज्ञा दी। तिस पर स्वयंभुव मनु ने वृम्हाजी से हाथ जोड़कर कहा---


" हे पिता! मैं आपकी आज्ञा को शिरोधार्य करके नमस्कार करता हूँ। मैं आपकी आज्ञानुसार प्रजा उत्पन्न करुंगा। परन्तु आप उस उत्पन्न होने वाली प्रजा के लिये स्थान बताइये कि बह कहाँ पर निवास करेगी।



 हे पिता! जो पृथ्वी सब जीवों के निवास मात्र थी सो वह महासागर के जल में डूब गई है सो आप उस डूबी हुई पृथ्वी के उद्धार का उपाय करो।"


 स्वयं भुव मनु द्वारा कहने पर वृह्मा जी को पृथ्वी के उद्धार को चिन्ता हुई कि वह किस प्रकार पथ्वी का उद्धार कर पावेंगे।


 इसी चिन्ता में वृह्मा जी को बहुत काल व्यतीत हो गया परन्तु ऐसी कोई युक्ती न दिखाई दी कि जिससे पृथ्वी का जल से उद्वार किया जा सके।
जब वह इस चिन्ता में निमग्न थे तब ब्रह्मा जी की नासिका से अंगूठे के अग्रभाग के बराबर का एक बाराह कर बच्चा उत्पन्न हुआ। तब वह उत्पन्न होने वाला बाराह का बच्चा आकाश में खड़ा ही खड़ा एक क्षण में ही बह हाथी के समान बड़ा हो गया। तब उसे देख कर वृह्मा जी सहित मारीच आदि ब्राम्हण और सन्त कुमार आदि मुनि बड़े आश्चर्य में पड़ गये और मनु आदि सहित सभी उस शूकर स्वरूप को देख कर अनेक प्रकार से विचार करने लगे।



 बृम्हा जी नाना प्रकार से विचार करने लगे वह सोचने लगे कि यह कोई स्वर्ग बासी तो नहीं आया, अथवा अन्य कोई हो! परंतु यह यदि मेरी नासिका के अन्दर एक क्षण भी और रहता, तो मेरी नासिका को टुकड़े-टुकड़े कर डालता। क्योंकि यह एक क्षण में ही निकल कर अंगूठे के सिर समान से एक पहाड़ के समान हो गया है। 



कहीं ऐसा तो नहीं कि यह यज्ञ भगवान हो जो हमारे मन को खेद दिलाने को इस प्रकार प्रकट हुये हों। जब वृम्हा जी अपने पुत्रों सहित इस प्रकार विचार कर रहे थे तभी वह बारह स्वरूप बादल के समान गर्जना करने लगे। तब उनकी ये घर्र घर्र आवाज को सुनकर सभी उनकी स्तुति करने लगे।



अपनी स्तुति को सुन बाराह भगवान ने एक बार फिर गर्जन किया पश्चात
वे उस अनंत जल राशि में घुस गये। तब कुछ ही समय में वे जल में डूबी हुई पृथ्वी को अपनी दाड़ों पर रख कर जल से बाहर निकलकर आये जब वह पृथ्वी को लिये जलके ऊपर आये तभी हिरणाक्ष नामक राक्षस जो अत्यंत बलवान था, हाथ में गदा उठाये भगवान बाराह की ओर आया उस दैत्य से युद्ध करने की शक्ति अन्य किसी देवता में नहीं थी। तब श्री बाराह भगवान ने उस दैत्य हिरणाक्ष्य का वध किया और उस वावन करोड़ योजन लम्बी चौड़ी पृथ्वी को अपनी विकाल दाड़ों पर रखकर जल के ऊपर वृह्मा जी के पास आये। 





जिस समय भगवान बाराह ने उस दैत्य को अपनी अग्रिम दाड़ों से चीरा था, उस समय दैत्य के रुधिर की कोच से बाराह भगवान के कपोल और तुन्ड ऐसा शोभित था कि जिस प्रकार गेरू को खोदते समय हाथी का मुख लाल हो जाता है। जिस समय वह पृथ्वी को लिये जल के ऊपर आये तब वृह्मा जी आदि देवता तथा ऋषि लोग हाथ जोड़ कर उनकी
स्तुिति करने लगे।



 हे भूधर ! हे भगवान! आपको हमारा बारम्बार नमस्कार है हे प्रभो ! अब इस पृथ्वी को प्रजा के निवास के निमित्त स्थापन करो, हम लोग आपके साथ सी रूप इस अचला देवी को नमस्कार करते हैं। बाराह भगवान देवताओं ऋषियों द्वारा अपनी स्तुति सुन प्रसन्न हुये और उनने पृथ्वी को अपनी धारणा शक्ति द्वारा अपने खुरों से मथित जलपर अचल स्थापित करा दिया। वे पृथ्वी को स्थापित कर अतंर्ध्यान हो अपने लोक
को चले गये, और वृह्मा जी द्वारा उत्पन्न वशिष्ट, अंगरा आदि सब हरि कीर्तन करते हुये उस पृथ्वी पर निवस करने लगे।

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