श्रीमद्भागवद पुराण चौदहवां अध्याय स्कंध ८ (मन्वादि का पृथक पृथक कर्मादि वर्णन)

-  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 

-  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।  

-  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि। 

-  ॐ विष्णवे नम: 

 - ॐ हूं विष्णवे नम: 

- ॐ आं संकर्षणाय नम: 

- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम: 

- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम: 

- ॐ नारायणाय नम: 

- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।। 

ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥

धर्म कथाएं

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
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श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]


नवीन सुख सागर

श्रीमद्भागवद पुराण चौदहवां अध्याय स्कंध ८
(मन्वादि का पृथक पृथक कर्मादि वर्णन)

दो० चौदह में प्रभु आज्ञा लहि मनु कीन्हे कर्म।

सो अब वर्णन उपदेशमय भांति-भांति  के मर्म || 









नवीन सुख सागर श्रीमद्भागवद पुराण चौदहवां अध्याय स्कंध ८ (मन्वादि का पृथक पृथक कर्मादि वर्णन) दो० चौदह में प्रभु आज्ञा लहि मनु कीन्हे कर्म। सो अब वर्णन उपदेशमय भांति-भांति  के मर्म ||   परीक्षत कहने लगे- हे भगवन! इन मन्वन्तरों में मन्वादिक जिस-जिस कर्म में प्रवृत्त हैं, वह सब कथा कहिये । शुकदेव जो बोले- हे राजन् ! मनु और उसके पुत्र ऋषि, इन्द्र और देवता ये सब भगवान के आधीन हैं और भगवान के अवतार से रक्षित हुए मन्त्रादि इस जगत यात्रा को चलाता हैं। चारों युग के अंत में जब वेद, काल के प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं, तब ऋषि लोग अपने तपोबल से उनको प्रगट करते हैं। जिससे फिर सनातन धर्म की प्रवृत्ति हो रही हैं।   फिर भगवान की आज्ञा से ये मनु अपने अपने काल में चारों पावों से युक्त इस धर्म को प्रवृत्त करते हैं । भगवान की दी हुई त्रिलोकी की सम्पत्ति को इन्द्र भोगता है और यथेच्छ वर्षा करता है। प्रत्येक युग में भगवान सनकादिक सिद्धों का रूप धारण कर ज्ञानोपदेश करते हैं, याज्ञवल्क्यादिक ऋषियों का रूप धारणकर सृष्टि रचते हैं। राजाओं का रूप धारण कर डाकुओं को मारते हैं, पृथक-पृथक शाखादि काल रूप धारण कर सब का संहार करते हैं तथापि वे दर्शन नहीं देते हैं ।   ।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अध्याय समाप्तम🥀।।   ༺═──────────────═༻ ༺═──────────────═༻ _人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_







परीक्षत कहने लगे- हे भगवन! इन मन्वन्तरों में मन्वादिक जिस-जिस कर्म में प्रवृत्त हैं, वह सब कथा कहिये । शुकदेव जो बोले- हे राजन् ! मनु और उसके पुत्र ऋषि, इन्द्र और देवता ये सब भगवान के आधीन हैं और भगवान के अवतार से रक्षित हुए मन्त्रादि इस जगत यात्रा को चलाता हैं। चारों युग के अंत में जब वेद, काल के प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं, तब ऋषि लोग अपने तपोबल से उनको प्रगट करते हैं। जिससे फिर सनातन धर्म की प्रवृत्ति हो रही हैं। 

फिर भगवान की आज्ञा से ये मनु अपने अपने काल में चारों पावों से युक्त इस धर्म को प्रवृत्त करते हैं । भगवान की दी हुई त्रिलोकी की सम्पत्ति को इन्द्र भोगता है और यथेच्छ वर्षा करता है। प्रत्येक युग में भगवान सनकादिक सिद्धों का रूप धारण कर ज्ञानोपदेश करते हैं, याज्ञवल्क्यादिक ऋषियों का रूप धारणकर सृष्टि रचते हैं। राजाओं का रूप धारण कर डाकुओं को मारते हैं, पृथक-पृथक शाखादि काल रूप धारण कर सब का संहार करते हैं तथापि वे दर्शन नहीं देते हैं । 

।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अध्याय समाप्तम🥀।। 

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 श्रीमद भागवद पुराण वेद व्यास जी द्वारा रचित एक मुख्य ग्रंथ है। एक बार सुनने या पढ़ने से किसी भी ग्रंथ का सार अंतकरण में बैठना सम्भव नहीं। किंतु निरंतर कथाओं का सार ग्रहण करने से निश्चय ही कृष्ण भक्ति की प्राप्ति होती है। इसीलिए धर्म ग्रंथों का निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।


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