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हिरण्यकशिपु हिरनक्ष्य की जनम कथा [भाग २]

 श्रीमद भागवद पुराण सोलहवां अध्याय [स्कंध ३] (जय विजय का वेकुँठ से अधः पतन) हिरण्यकशिपु हिरनक्ष्य की जनम कथा [भाग २] दोहा-गीत आप जो विधि कियो,वर्णों सो सब काम या सोलह अध्याय में कीजे श्रवण तमाम । मैत्रेय जी बोले- हे विदुर जी ! उन चारों मुनियों की बात सुन भगवान नारायण ने कहा-है मुने ! दोनों जय विजय नाम के पार्षद हैं । जिन्होंने हमारी आज्ञा का उल्लंघन कर के आपका तिरस्कार करके भारी अपराध किया है आपका जो अनादर मेरे पार्षदों ने किया है सो वह मैंने ही किया है ऐसा मैं मानता हूँ। अतः आपने इनको दंड दिया सो बहुत अच्छा किया है यह सब आपकी सेवा के प्रताप से ही मैं इस कीति और वैकुन्ठ पद को प्राप्त हूँ सो जो आपसे प्रतिकूल होवे मैं स्वयं उसका छेदन करू, चाहे वह मेरी स्वयं की भुजा ही क्यों न हों। आपकी सेवा के प्रभाव से ही हमारे चरण कमलों की रज पवित्र है, कि जिससे संपूर्ण पापों का नाश हो जाता है, अखंड अंकुरित योगमाया के वैभव से युक्त मैं आप जैसे ब्राह्मणों की निर्मल चरण रज को किरीटों पर धारण करता हूँ सो आप जैसे ब्राह्मण ऋषि यदि अपराध करें तो भी उनके वह अपराध सहन करने योग्य हैं । जो लोग मेरे शरीर रूप गौ,