।। श्री गणेशाय नमः।।
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
- ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
- ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
- ॐ विष्णवे नम:
- ॐ हूं विष्णवे नम:
- ॐ आं संकर्षणाय नम:
- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
- ॐ नारायणाय नम:
- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
धर्म कथाएं
Bhagwad puran
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]
पिछले अध्याय में आपने पढ़ा
नवीन सुख सागर
श्रीमद भगवद पुराण तेरहवाँ अध्याय [स्कंध ९]
(इक्ष्वाकु पुत्र निमि का वंश विवरण)
(राजा जनक के जन्म की कथा)
दोहा-यहि तेरवें अध्याय में निमि का वंश बखान ।
जनक आदि को जोगमय वर्णन ईश्वर ज्ञान |।
श्रीशुकदेवजी कहने लगे हे राजन् ! इक्ष्वाकु पुत्र निमि ने यज्ञ को आरम्भ करके वशिष्ठ को ऋत्विज बनाने के लिये कहा, यह सुन वशिष्ठ बोले कि मुझको पहिले इन्द्र ने वरण किया है इसलिये जब तक उस यज्ञ को पूर्ण कराकर आऊ उस समय तक प्रतीक्षा करो।
यह सुन निमि चुप हो गया और वशिष्ठ इन्द्र का यज्ञ कराने चले गये। निमि विद्वान था इसलिये उसने सोचा कि जीवन चलायमान है। इसलिए गुरु की प्रतीक्षा न करके अन्य ऋत्विजों को बुलाकर यज्ञ करना प्रारम्भ कर दिया।
इन्द्र के यज्ञ को कराके जब वशिष्ठ आये तब शिष्य का अन्याय देखकर शाप दिया कि तू बड़ा पण्डित अभिमानी है तेरा देहपात हो जायगा ।
निमि ने भी अधर्मरत गुरु को शाप दिया कि तू लोभ से धर्म नहीं जानता है इससे तेरा भी देह नष्ट हो जायगा। इस तरह अध्यात्म ज्ञानी निमि ने अपना देह त्याग दिया और वशिष्ठ ने भी देह त्याग कर मित्रा वरुणी द्वारा उर्वशी में जन्म लिया। उन मुनि लोगों ने निमि के देह को सुगन्धित वस्तुओं में रखकर यज्ञ समाप्त कर दिया और आये हुए देवताओं से कहने लगे ।
प्रभुवर्ग ! जो आप प्रसन्न हो तो राजा का देह जिवा दीजिये । देवताओं ने कहा तथास्तु तब निमि बोला कि मुझको देह बंधन में मत डालो।
देवगण बोले
"हे विदेह ! तुम शरीर धारियों के नेत्रों में यथेच्छ बास करो पलकों के खोलने मूंदने से आपकी स्थिति पहचानी जयगी।
किसी राजा के न रहने से मनुष्य को भय उत्पन्न होने लगा तब सब मिलकर निमि राजा की देह को मथने लगे मथने से एक कुमार उत्पन्न हुआ। इसका केवल जन्म मात्र ही हुआ था इससे इसे जनक कहने लगे मृत देह से उत्पन्न होने के कारण विदेह नाम पड़ गया मथने से हुआ इससे मिथला कहलाया फिर इसने अपने नाम से मिथलापुरी बसाई।
हे राजन् ! जनक के उदावसु, उदावसु के नंदिवर्धन, नंदिवर्धन के सुकेतु, सुकेतु के देवरात, देवरात के वृहद्रथ वृहद्रथ के महावीर्य, के सुधृति, सुधृति के धृष्टकेतु, धृष्टकेतु के हर्यश्व के मरु, मरु के प्रतीत के कृतरथ, कृतरथ के देवमीढ देवमीढ के विश्रुत, विश्रुत के महाधृति, महाधृति के कृतिराज, कृतिराज के महारोम, महारोमा के स्वर्ण रोमा, स्वर्णरोम के हृस्वरोमा इसके सीरध्वज हुआ।
इसने यज्ञ के लिये पृथ्वी में हल चलाया था तब हल के अग्र से सीता नामकी एक कन्या उत्पन्न हुई इसी से इसको सीर ध्वज कहने लगें। इसके कुशध्वज और कुशध्वज के धर्मध्वज हुआ, धर्मध्वज के कृतध्वज और मितध्वज दो पुत्र हुए। इनमें से कृतध्वज को कौशिध्वज और मितध्वज को खाण्डिक्य हुआ। खाण्डिक्य को शिध्वज, शिध्वज को भानुमान् और भानुमान शतद्युम्न पुत्र हुआ। शतद्युम्न को शुशि इसके सनद्वाज, को ऊर्ध्वकतु और ऊर्ध्वकेतु के पुरुजितमान पुत्र हुआ । पुरुजित् के अरिष्टनेमि, अरिष्टनेमि के श्रुताय इसके सुपार्श्वव, सुपार्श्वव के चित्ररथ और क्षेमधी हुआ।
क्षेमधी के समरथ, इसके उपगुरु और इसके अग्नि के अश से उपगुप्त नामक हुआ। उपगुप्त के वस्वनंत, वस्वनंत के युयुधाक, युयुधान के सुभाषण, सुभाषण के जय, जय के विजय और विजय के ऋतु हुआ, ऋतु के शुनक, शुनक के बीतहव्य, बीतहव्य को हृति, हृति को बहुलाश्व, बहुलाश्व को कृति हुआ। यह मिथिलवंशी राजाओं का वर्णन है ये सब आत्मविद्या में बड़े दत्त थे और योगेश्वर भगवान को कृपा से सुख दुःखादि से छूटकर मुक्त हो गये ।
।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अध्याय समाप्तम🥀।।
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_人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_