Bhagwad Mahapuran को पढ़ने से पहले कुछ बातें समझने से तथ्य समझ में आते हैं।।

ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥

ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥

ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥


धर्म कथाएं

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
 श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]

श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]

तब भगवान ने वृम्हा जी को मोह से प्रक्त करने के लिये चार श्लोक कहे जिनसे सम्पूर्ण भागवत पूर्ण हो जाती है उसका सार इस प्रकार है। भगवान विष्णु ने कहा-हे वृम्हन जैसा मेरा स्वरूप है वैसा ही मेरा स्वभाव है, जैसा रूप, गुण, कर्म है वैसा ही मेरी कृपा से तत्व विज्ञान तुम्हें प्राप्त हो। इस जगत में आदि अन्त में मैं ही रहता हूँ प्रलय के उपरांत जो शेष रहता है सो वह सब मैं ही रहता हूँ जिस प्रकार स्वर्ण से अनेक प्रकार के पृथक पृथक नाम वाले आभूषण बनते हैं तो वे अलग-अलग प्रतीत होते हैं परन्तु जब सबको गला कर सुवर्ण किया जाता है तो सब एक होने पर केबल सुवर्ण ही होता है तब उन अनेक प्रकार के आभूषणों का नाम तथा रूप विलय हो जाता है। उसी प्रकार में भी हूँ यह संसार तथा जगत की प्रत्येक वस्तु मुझमें से ही है और मैं ही सब में व्याप्त हूँ उनको मेरी ही माया जानो। वास्तव में जो अर्थ बिना प्रतीत होता है और आत्मा में प्रतीत नहीं होता है वह सब मेरी ही माया जानो। जिस प्रकार मिटटी हैं तो घड़ा भी है और मिटटी और सुवर्ण नहीं है तो घड़ा और आभूषण भी नहीं है। सो हे वृह्मन ! मेरे अलावा और कुछ भी नहीं है । जगत को समस्त बस्तुओं का मूल मैं ही हूँ । हे वृम्हन ! एकाग्र चित्त से तुम अच्छे प्रकार से स्थिर रहोगे तो तुम कल्पों में भी कभी मोह को प्राप्त नहीं होगे। श्री शुकदेवजी ने कहा-हे भारत! इस प्रकार वृह्माजी को उपदेश करते करते भगवान अन्तर्ध्यान हो गये तब पश्चात् वृम्हाजी ने भगवान को हाथ जोड़ कर नमस्कार किया तब इस सम्पूर्ण भूत मय विश्व की वृम्हाजी ने रचना करके निर्माण किया। एक समय वृह्माजी प्रजा के कल्याण के निमित्त अपने स्वार्थ की कामना के निमित्त यम नियमादिकों को रच यम और नियमों से स्थिति हुये तब वृह्मा के प्यारे पुत्रों में से नारदजी अपने पिता वृह्मा को शील, नम्रता, दम्भ आदि गुणों से सेवा करने लगे। तब विष्णु की माया को जानने के लिये नारदजी ने अपने पिता ब्रह्माजी को प्रसन्न किया । और उन्हें प्रसन्न जानकर वही पूछा जो तुमने मुझसे पूछा है ।   श्रीमद भागवद पुराण किसने किसे किसे सुनायी।।   तब वृह्माजी ने नारायण द्वारा कहा हुआ दस लक्षणों युक्त भागवत पुराण को अपने पुत्र नारद को सुनाया। तब नारदजी ने सरस्वती नदी के तट पर महातेजस्वी व्यास मुनि को सुनाया तब हमने अपने पिता से सुन कर तुम्हें सुनाया कि जो तुमने हमसे पूछा-कि विराट पुरुष द्वारा जगतकिस प्रकार होता है सो वह सब कहा कि जिस प्रकार विराट पुरुष द्वारा जगत उत्त्पन होता है।   यह श्रीमद्भागवत की कथा भगवान हरि ने प्रथम वृह्माजी ने नारद के उनके प्रश्न करने पर सुनाई थी और तब नारदजी ने यही कथा मेरे तात वेद व्यास जो से वर्णन की और वही मेरे तात ने मुझे सुनाई थी सो उसी परम पवित्र कथा को मैं तुम्हारे सामने वर्णन करता हूँ सो आप इस हरि कथा रूपी अमृत को श्रवणों द्वारा एकाग्र चित्त से पान करें।

Bhagwad Mahapuran को पढ़ने से पहले कुछ बातें समझने से तथ्य समझ में आते हैं।।भागवत पुराण किसने लिखी।Before moving further let's get to know some facts about SHRIMAD BHAGWAD MAHAPURAN 





।।श्रीमद भागवद पुराण आरम्भ।।

 भगवान ने वृम्हा जी को मोह से प्रक्त करने के लिये चार श्लोक कहे जिनसे सम्पूर्ण भागवत पूर्ण हो जाती है उसका सार इस प्रकार है। 

भगवान विष्णु ने कहा-हे वृम्हन जैसा मेरा स्वरूप है वैसा ही मेरा स्वभाव है, जैसा रूप, गुण, कर्म है वैसा ही मेरी कृपा से तत्व विज्ञान तुम्हें प्राप्त हो। इस जगत में आदि अन्त में मैं ही रहता हूँ प्रलय के उपरांत जो शेष रहता है सो वह सब मैं ही रहता हूँ जिस प्रकार स्वर्ण से अनेक प्रकार के पृथक पृथक नाम वाले आभूषण बनते हैं तो वे अलग-अलग प्रतीत होते हैं परन्तु जब सबको गला कर सुवर्ण किया जाता है तो सब एक होने पर केबल सुवर्ण ही होता है तब उन अनेक प्रकार के आभूषणों का नाम तथा रूप विलय हो जाता है। उसी प्रकार में भी हूँ यह संसार तथा जगत की प्रत्येक वस्तु मुझमें से ही है और मैं ही सब में व्याप्त हूँ उनको मेरी ही माया जानो। वास्तव में जो अर्थ बिना प्रतीत होता है और आत्मा में प्रतीत नहीं होता है वह सब मेरी ही माया जानो। जिस प्रकार मिटटी हैं तो घड़ा भी है और मिटटी और सुवर्ण नहीं है तो घड़ा और आभूषण भी नहीं है। सो हे वृह्मन ! मेरे अलावा और कुछ भी नहीं है । जगत को समस्त बस्तुओं का मूल मैं ही हूँ ।  







नरसिंह भगवान का अंतर्ध्यान होना।। मय दानव की कहानी।।



सनातन धर्म तथा सभी वर्ण आश्रमों का नारद मुनि द्वारा सम्पूर्ण वखान।।


महा भक्त प्रह्लाद की कथा।। भाग १



हे वृम्हन ! एकाग्र चित्त से तुम अच्छे प्रकार से स्थिर रहोगे तो तुम कल्पों में भी कभी मोह को प्राप्त नहीं होगे। श्री शुकदेवजी ने कहा-हे भारत! इस प्रकार वृह्माजी को उपदेश करते करते भगवान अन्तर्ध्यान हो गये तब पश्चात् वृम्हाजी ने भगवान को हाथ जोड़ कर नमस्कार किया तब इस सम्पूर्ण भूत मय विश्व की वृम्हाजी ने रचना करके निर्माण किया। एक समय वृह्माजी प्रजा के कल्याण के निमित्त अपने स्वार्थ की कामना के निमित्त यम नियमादिकों को रच यम और नियमों से स्थिति हुये तब वृह्मा के प्यारे पुत्रों में से नारदजी अपने पिता वृह्मा को शील, नम्रता, दम्भ आदि गुणों से सेवा करने लगे। तब विष्णु की माया को जानने के लिये नारदजी ने अपने पिता ब्रह्माजी को प्रसन्न किया । और उन्हें प्रसन्न जानकर वही पूछा जो तुमने मुझसे पूछा है ।
  श्रीमद्भागवद में प्राय पद पद पर केवल श्रीकृष्ण की कथाओं का व्याख्यान है। इसीलिए सूत जी कहते है 

अन्य वेदों, उपनिषद, का पठन करने से भी भगवान अंतकरण  में आते हैं।
किन्तु भगवाद पुराण पढ़ने से शीघ्र प्राप्त होते हैं।
क्यूंकि, संसार में जैसे शुक अर्थात्‌ तोते के मुख से उत्कृष्ट फल अति मीठा होता है। इसी प्रकार श्री शुकदेवजी द्वारा ये भगवाद पुराण पूर्ण सार है, जो समस्त प्रकार से श्री कृष्ण की सम्पूर्ण लीलाओं का व्याख्यान करता है। इसीलिए इस का पाठ सर्वोपरि है।

श्रीमद भागवद पुराण किसने किसे किसे सुनायी।।



तब वृह्माजी ने नारायण द्वारा कहा हुआ दस लक्षणों युक्त भागवत पुराण को अपने पुत्र नारद को सुनाया। तब नारदजी ने सरस्वती नदी के तट पर महातेजस्वी व्यास मुनि को सुनाया तब हमने अपने पिता से सुन कर तुम्हें सुनाया कि जो तुमने हमसे पूछा-कि विराट पुरुष द्वारा जगतकिस प्रकार होता है सो वह सब कहा कि जिस प्रकार विराट पुरुष द्वारा जगत उत्त्पन होता है। 

यह श्रीमद्भागवत की कथा भगवान हरि ने प्रथम वृह्माजी ने नारद के उनके प्रश्न करने पर सुनाई थी और तब नारदजी ने यही कथा मेरे तात वेद व्यास जो से वर्णन की और वही मेरे तात ने मुझे सुनाई थी सो उसी परम पवित्र कथा को मैं तुम्हारे सामने वर्णन करता हूँ सो आप इस हरि कथा रूपी अमृत को श्रवणों द्वारा एकाग्र चित्त से पान करें।
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