* नवम स्कन्ध प्रारम्भ * * मङ्गलाचरण *प्रथम अध्याय (सुद्युम्न का स्त्रीत्व प्राप्ति वृत्तान्त )

-  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 

-  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।  

-  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि। 

-  ॐ विष्णवे नम: 

 - ॐ हूं विष्णवे नम: 

- ॐ आं संकर्षणाय नम: 

- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम: 

- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम: 

- ॐ नारायणाय नम: 

- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।। 

ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥

धर्म कथाएं

Bhagwad puran

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
 श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]

श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]


अथ सुख सागर * नवम स्कन्ध प्रारम्भ *  * मङ्गलाचरण *   दोहा- यदुनायक तारन तरन, दीनबन्धु प्रतिपाल | राधावर अशरण शरण, गिरवरधर गोपाल ॥   छन्द-- जय-जय यदुनायक जन सुखदायक, कंस विनाशन अधहारी।  जय-जय नदनन्दन जगदुखकन्दन मेटन भय प्रभु नर तनुधारी॥ जे दीनदयाला अमृत कृपाला जगपाला भक्तन हितकारी |  करशक्ति प्रदाना हे भगवाना पाहि पाहि प्रभु पाहि मुरारी॥   प्रथम अध्याय   (सुद्युम्न का स्त्रीत्व प्राप्ति बृत्तान्त )   दो०- - वैवस्वत मनु के वंश को वर्णों यहि अध्याय ।  ता पीछे विधु वंश को है कीन्हो प्रस्तार ॥१॥   परीक्षित बोले- हे मुनिवर ! आपके कहे हुए सब मन्वन्तर और उन मन्वन्तरों में हरिभगवान के किये हुए चरित्र सब सुनें। सत्यव्रत नाम राजर्षि ने मत्स्यरूप भगवान की आराधना करके उनसे पहिले कल्प में ज्ञान प्राप्त किया। वही इस कल्प में का पुत्र होकर वैवस्वतमनु हुआ। यह वृत्तान्त मैंने आपसे सुना और उसके इक्ष्वाकु आदि पुत्रों का वर्णन जो आपने किया वह भी सब सुना हैं हे ब्रह्मन् ! अब उनके वंश के पृथक पृथक राजा तथा उनके चरित्रों का वर्णन कीजिये।   श्री शुकदेव जी बोले हे परन्तप ! छोटे बड़े प्राणियों का आत्मरूप जो परम पुरुष है, वही कल्पान्त में यह विश्व को धारण करने वाला रूप हुआ था और उसके सिवाय कुछ भी नहीं था। उसकी नाभि से हिरण्यमय कमल हुआ और उस कमल में चतुर्मुख ब्रह्माउत्पन्न हुआ। ब्रहमा से मरीचि हुआ मरीचि से कश्यप तथा कश्यप से दक्ष की अदिति नाम पुत्री से सूर्य हुआ। उस सूर्य से श्राद्धदेव मनु हुआ और श्राद्ध देव को श्रद्धारानी से इक्ष्वाकु, नृग, शर्माति, दिष्ट, धृष्ट, कुरुषक, नरिष्यन्त, पृषध, नभग और कवि ये दश पुत्र हुए। मनु से इन सन्तानों के होने से पहिले सन्तान के निमित्त वशिष्ठजी ने मित्रावरुण का यज्ञ कराया था। तब पयोव्रत धारण करने वाली मनु की श्रद्धा नाम पत्नी ने होता के पास आ, प्रणाम कर पुत्री के लिये प्रार्थना की। तब अध्वर्यु के कहने से पुत्री का ध्यान कर पूजन किया और वषटकार शब्द उच्चारण कर अग्नि में आहुती दी ।   होता के इस अपराध से  इला नाम कन्या हुई उसको देखकर मनु अत्यन्त दुःखी होकर गुरु से बोले कि---   "---हे ब्रह्मन् ! यह क्या हुआ ? ब्रह्मबादियों का यह कर्म अन्यथा कैसे हो गया ? ऐसी विपरीतता वेद के मन्त्रों में होना सर्वथा अनुचित है।""   वशिष्ठजी बोले सङ्कल्प में यह विषमता होता के अपराध से हुई तथापि हम अपने तेजो बल से इस कन्या को सुन्दर पुत्र बना देंगे। हे राजन् ! ऐसा मन में विचार कर वशिष्ठजी ने इला को पुरुष बनाने की इच्छा से भगवन की स्तुति की। भगवान ने प्रसन्न होकर उसको अभीष्ट वर दिया और इला सुद्युम्न नाम पुरुष बन गई। एक दिन सुद्युम्न सिन्धु देश के घोड़े पर बैठकर मित्र वर्गों को साथ ले आखेट के लिये वन में विचरता हुआ मृगों को बेधता हुआ उत्तर दिशा की ओर चला गया। सुमेरु पर्वत की तलहटी के बन में घुसकर वहाँ पहुँचा जहाँ महादेवजी पार्वती के साथ बिहार करते थे । हे राजन् ! उस स्थान में प्रवेश करते ही सुद्युम्न स्त्री हो गया और घोड़ा घोड़ी हो गया। उसके साथ ही सब साथी भी स्त्री बन गये।   परीक्षित ने पूछा--- हे भगवान ! इस देश में ऐसा यह क्या गुण है अथवा किसने इसको ऐसा कर दिया हैं ?   श्रीशुकदेवजी बोले-एक समय व्रतधारी ऋषि लोग महादेवजी के दर्शन करने के लिये गये । उनको देखकर पार्वती नग्न होने के कारण अत्यन्त लज्जित हुई और पति की गोद में उठकर झटपट अधोवस्त्र को धारण करने लगी।    ऋषि लोग भी उनके रमण प्रसंग को देख वहाँ से हटकर नर नारायण के आश्रम को चले गये।  तब शिवजी ने अपनी प्यारी की। के लिये यह कहा कि जो इस स्थान में आवेगा वह स्त्री हो जायगा।  इसी कारण अपने अनुचरों को संग लिये वह स्त्री रूप सुद्युम्न  बन-बन घूमने लगी। आश्रम के समीप हो सखियों के साथ उस उत्तम स्त्री को विचरती हुई देख चन्द्रमा के पुत्र भगवान बुध के मन में उसकी बड़ी अभिलाषा हुई। वह भी बुध को अपना पति बनाने के लिए इच्छा करने लगी और दोनों के संयोग से पुरूरवा नाम पुत्र हुआ । स्त्री होने पर भी सुद्युम्न को अपके कुलगुरु वशिष्ठजी का स्मरण करता रहा। वशिष्ठजी इसकी दशा को देख अत्यन्त अनुकम्पा कर उसको फिर पुरुष बनाने की इच्छा से शङ्कर की आराधना करने लगे। शिवजी ने ऋषि पर प्रसन्न हो और अपनी वाणी को सत्य करने के लिये यह कहा, यह तुम्हारा शिष्य एक महीने स्त्री और एक महीने पुरुष रहा और इस तरह पृथ्वी का पालन करेगा। इस प्रकार अपने कुलगुरु के अनुग्रह से पुरुष होकर राज्य करने लगा। परन्तु एक महीने तक स्त्रीपन को प्राप्त होने के कारण वह राजा लज्जावश छुपा रहता था इसी से उसकी प्रजा प्रसन्न न हुई। उसके उत्कल, गया और विमल तीन पुत्र हुए, ये दक्षिण देश में राज्य करने लगे। सुद्यम्न अपनी वृद्धावस्था में प्रतिष्ठान पुर का राज्य पुरूरवा को देकर स्वयं वन को चला गया ।   ।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अध्याय समाप्तम🥀।।   ༺═──────────────═༻ ༺═──────────────═༻ _人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_


अथ सुख सागर

* नवम स्कन्ध प्रारम्भ * * नवम स्कन्ध प्रारम्भ *  * मङ्गलाचरण *प्रथम अध्याय   (सुद्युम्न का स्त्रीत्व प्राप्ति वृत्तान्त )  

* मङ्गलाचरण * 


दोहा- यदुनायक तारन तरन, दीनबन्धु प्रतिपाल |
राधावर अशरण शरण, गिरवरधर गोपाल ॥ 


छन्द-- जय-जय यदुनायक जन सुखदायक, कंस विनाशन अधहारी। 
जय-जय नदनन्दन जगदुखकन्दन मेटन भय प्रभु नर तनुधारी॥
जे दीनदयाला अमृत कृपाला जगपाला भक्तन हितकारी| 
करशक्ति प्रदाना हे भगवाना पाहि पाहि प्रभु पाहि मुरारी॥ 


प्रथम अध्याय 


(सुद्युम्न का स्त्रीत्व प्राप्ति वृत्तान्त ) 


दो०- - वैवस्वत मनु के वंश को वर्णों यहि अध्याय । 
ता पीछे विधु वंश को है कीन्हो प्रस्तार ॥१॥ 








परीक्षित बोले- हे मुनिवर ! आपके कहे हुए सब मन्वन्तर और उन मन्वन्तरों में हरिभगवान के किये हुए चरित्र सब सुनें। सत्यव्रत नाम राजर्षि ने मत्स्यरूप भगवान की आराधना करके उनसे पहिले कल्प में ज्ञान प्राप्त किया। वही इस कल्प में का पुत्र होकर वैवस्वतमनु हुआ। यह वृत्तान्त मैंने आपसे सुना और उसके इक्ष्वाकु आदि पुत्रों का वर्णन जो आपने किया वह भी सब सुना हैं हे ब्रह्मन् ! अब उनके वंश के पृथक पृथक राजा तथा उनके चरित्रों का वर्णन कीजिये। 

श्री शुकदेव जी बोले हे परन्तप ! छोटे बड़े प्राणियों का आत्मरूप जो परम पुरुष है, वही कल्पान्त में यह विश्व को धारण करने वाला रूप हुआ था और उसके सिवाय कुछ भी नहीं था। उसकी नाभि से हिरण्यमय कमल हुआ और उस कमल में चतुर्मुख ब्रह्माउत्पन्न हुआ। ब्रहमा से मरीचि हुआ मरीचि से कश्यप तथा कश्यप से दक्ष की अदिति नाम पुत्री से सूर्य हुआ। उस सूर्य से श्राद्धदेव मनु हुआ और श्राद्ध देव को श्रद्धारानी से इक्ष्वाकु, नृग, शर्माति, दिष्ट, धृष्ट, कुरुषक, नरिष्यन्त, पृषध, नभग और कवि ये दश पुत्र हुए। मनु से इन सन्तानों के होने से पहिले सन्तान के निमित्त वशिष्ठजी ने मित्रावरुण का यज्ञ कराया था। तब पयोव्रत धारण करने वाली मनु की श्रद्धा नाम पत्नी ने होता के पास आ, प्रणाम कर पुत्री के लिये प्रार्थना की। तब अध्वर्यु के कहने से पुत्री का ध्यान कर पूजन किया और वषटकार शब्द उच्चारण कर अग्नि में आहुती दी ।


होता के इस अपराध से  इला नाम कन्या हुई उसको देखकर मनु अत्यन्त दुःखी होकर गुरु से बोले कि--- 

"---हे ब्रह्मन् ! यह क्या हुआ ? ब्रह्मबादियों का यह कर्म अन्यथा कैसे हो गया ? ऐसी विपरीतता वेद के मन्त्रों में होना सर्वथा अनुचित है।"" 

वशिष्ठजी बोले सङ्कल्प में यह विषमता होता के अपराध से हुई तथापि हम अपने तेजो बल से इस कन्या को सुन्दर पुत्र बना देंगे। हे राजन् ! ऐसा मन में विचार कर वशिष्ठजी ने इला को पुरुष बनाने की इच्छा से भगवन की स्तुति की।
भगवान ने प्रसन्न होकर उसको अभीष्ट वर दिया और इला सुद्युम्न नाम पुरुष बन गई। एक दिन सुद्युम्न सिन्धु देश के घोड़े पर बैठकर मित्र वर्गों को साथ ले आखेट के लिये वन में विचरता हुआ मृगों को बेधता हुआ उत्तर दिशा की ओर चला गया। सुमेरु पर्वत की तलहटी के बन में घुसकर वहाँ पहुँचा जहाँ महादेवजी पार्वती के साथ बिहार करते थे । हे राजन् ! उस स्थान में प्रवेश करते ही सुद्युम्न स्त्री हो गया और घोड़ा घोड़ी हो गया। उसके साथ ही सब साथी भी स्त्री बन गये।

परीक्षित ने पूछा--- हे भगवान ! इस देश में ऐसा यह क्या गुण है अथवा किसने इसको ऐसा कर दिया हैं ?



श्रीशुकदेवजी बोले-एक समय व्रतधारी ऋषि लोग महादेवजी के दर्शन करने के लिये गये । उनको देखकर पार्वती नग्न होने के कारण अत्यन्त लज्जित हुई और पति की गोद में उठकर झटपट अधोवस्त्र को धारण करने लगी। 


ऋषि लोग भी उनके रमण प्रसंग को देख वहाँ से हटकर नर नारायण के आश्रम को चले गये। 
तब शिवजी ने अपनी प्यारी की। के लिये यह कहा कि जो इस स्थान में आवेगा वह स्त्री हो जायगा। 
इसी कारण अपने अनुचरों को संग लिये वह स्त्री रूप सुद्युम्न  बन-बन घूमने लगी। आश्रम के समीप हो सखियों के साथ उस उत्तम स्त्री को विचरती हुई देख चन्द्रमा के पुत्र भगवान बुध के मन में उसकी बड़ी अभिलाषा हुई। वह भी बुध को अपना पति बनाने के लिए इच्छा करने लगी और दोनों के संयोग से पुरूरवा नाम पुत्र हुआ । स्त्री होने पर भी सुद्युम्न को अपके कुलगुरु वशिष्ठजी का स्मरण करता रहा। वशिष्ठजी इसकी दशा को देख अत्यन्त अनुकम्पा कर उसको फिर पुरुष बनाने की इच्छा से शङ्कर की आराधना करने लगे। शिवजी ने ऋषि पर प्रसन्न हो और अपनी वाणी को सत्य करने के लिये यह कहा, यह तुम्हारा शिष्य एक महीने स्त्री और एक महीने पुरुष रहा और इस तरह पृथ्वी का पालन करेगा। इस प्रकार अपने कुलगुरु के अनुग्रह से पुरुष होकर राज्य करने लगा। परन्तु एक महीने तक स्त्रीपन को प्राप्त होने के कारण वह राजा लज्जावश छुपा रहता था इसी से उसकी प्रजा प्रसन्न न हुई। उसके उत्कल, गया और विमल तीन पुत्र हुए, ये दक्षिण देश में राज्य करने लगे। सुद्यम्न अपनी वृद्धावस्था में प्रतिष्ठान पुर का राज्य पुरूरवा को देकर स्वयं वन को चला गया ।


।।🥀इति श्री पद्यपुराण कथायाम अध्याय समाप्तम🥀।। 

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The events, the calculations, the facts aren't depicted by any living sources. These are completely same as depicted in our granths. So you can easily formulate or access the power of SANATANA. Jai shree Krishna.🙏ॐ

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 श्रीमद भागवद पुराण वेद व्यास जी द्वारा रचित एक मुख्य ग्रंथ है। एक बार सुनने या पढ़ने से किसी भी ग्रंथ का सार अंतकरण में बैठना सम्भव नहीं। किंतु निरंतर कथाओं का सार ग्रहण करने से निश्चय ही कृष्ण भक्ति की प्राप्ति होती है। इसीलिए धर्म ग्रंथों का निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।



 Preserving the most prestigious, सब वेदों का सार, प्रभू विष्णु के भिन्न अवतार...... Shrimad Bhagwad Mahapuran 🕉 For queries mail us at: shrimadbhagwadpuran@gmail.com Suggestions are welcome!
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