सुख सागर अध्याय ८ स्कंध ९।। सागर वंश सागर वंश का इतिहास, सागर वंशायरी, सागर वंशी

।। श्री गणेशाय नमः।।

-  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 

-  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।  

-  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि। 

-  ॐ विष्णवे नम: 

 - ॐ हूं विष्णवे नम: 

- ॐ आं संकर्षणाय नम: 

- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम: 

- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम: 

- ॐ नारायणाय नम: 

- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।। 

ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 

ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥

धर्म कथाएं

Bhagwad puran

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
 श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]

श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]

▲───────◇◆◇───────▲

नवीन सुख सागर  श्रीमद भागवद पुराण  आठवां अध्याय [स्कंध ९] ( सागर वंश का विवरण)   दोहा-अष्टममें रोहितास को वर्णों वंश उचार। भये सगर से जितन कुल कियो मुति छार ॥ ६॥   श्रीशुकदेवजी बोले- रोहितास के हरित हरित के चंप हुआ जिसने चंपा पुरी बसाई थी। उस चंप से सुदेव और सुदेव से विजय हुआ। विजय के भरुक भएक के वृक के बासुक हुआ, इस बाहुक की भूमि शत्रुओं ने छीन ली थी इसलिये अपनी स्त्री को साथ ले वन को चला गय। जब यह वृद्ध होकर मरा तब इसकी रानी सती होने लगी किन्तु इसको गर्भवती देखकर और्व ऋषि ने सती होने से रोक किया। अपनी सपत्नी को गर्भवती समझ अन्य रानियों ने भोजन में विष मिलाकर दे दिया तब वह बालक विष सहित उत्पन्न हुआ। इसी से उसका नाम सगर पड़ गया।   यह सगर चक्रवर्ती हुआ इसके पुत्त्रों ने सगर बनाया था इसने अपने गुरु की आज्ञा से तालजंघ यवन, शक, हैहय बर्बरों का बध किय। कितनों ही के हाथ पैर तोड़कर उनकी आकृति बिगाड़ दी, कितनों ही के सिर मुड़ाय दिये और दाढ़ी मूछ रहने दीं। कितनों ही के बाल खुले छोड़ दिये। और ऋषि के कहने से अश्वमेध यज्ञों से सम्पूर्ण वेदस्वरूप हरि का भजन किया। यज्ञ के लिये इसने जो घोड़ा छोड़ा था उसको इन्द्र हर कर ले गया। पिता के आज्ञाकारी सगर के साठ हजार पुत्र बड़ा अहङ्कार करके घोड़े को ढूँढ़ने के लिये निकले और शस्त्रों से पृथ्वी खोदने लगे खोदते २ पूर्वोत्तर दिशा में कपिलदेव के पास घोड़े को बंधा देखा और कहने लगे कि यही चोर हैं। अब आंख बन्द करके बैठ गया है। और वे शस्त्रों को उठाकर मारो २ कहते हुए दौड़े।  तब मुनि ने आंख खोली जिनका चित्त इन्द्र ने हर लिया था। और कपिल जी के अपराध से जो मृतक समान हो गये थे ऐसे वे साठ हजार पुत्र ऋषि की दृष्टि पड़ते ही तत्क्षण भस्म हो गये।   यह बात कि सगर के पुत्र कपिल देवजी के क्रोध से भस्म होकर ठीक नहीं है। जिस कपिल मुनि ने इस संसार में सांख्यमय ऐसी दृढ़ नौका रची है जिस पर चढ़कर मुमुक्ष जन मृत्यु के मार्गरूप समुद्र से पार उतर जाते हैं उन कपिल देवजी को कोई पराया और अपना कैसे हो सकता हैं?   सगर की केशिनी नाम दूसरी रानी थी इनके असमंजस नाम पुत्र हुआ और इसके अंशुमान हुआ यह अंशुमान अपने बाबा का बड़ा आज्ञाकारी था। असमंजस पूर्व जन्म में योगी था किन्तु कुसंग से इसका योग भ्रष्ट हो गया था। इसलिये इस जन्म में यह ऐसे निन्दित कर्म करता था कि जो जाति वालों के लिये अप्रिय लगते थे। यह खेलते कर्म बालकों को उठाकर सरयू में फेंक दिया था। इन कुलक्षणों के कारण पिता ने इसे निकाल दिया तब अपने योग बल से उसने उन बालों को फिर से प्रगट कर दिया जिसको डुबाया था। अयोध्यावासियों ने जब अपने बालकों को फिर आते हुए देखा तब बड़े विस्मित हुए और राजा भी यह सोच कर कि मैंने ऐसे समर्थ्य वाले पुत्र को वृथा निकाल दिया बड़ा पश्चाताप करने लगा ।   अपने बाबा के कहने से अंशुमान घोड़े को ढूँढ़ने के लिये निकला और  वह उसी मार्ग में होकर गया जो उसके काकाओं ने खोदा था।   वहां आकर भस्म की ढेरी के पास उसने घोड़े को बंधा हुआ देखा । वह कपिल मुनि को बैठा हुआ देख हाथ जोड़ शिर नवाय एकाग्र चित्त से स्तुति करने लगा----   "हे परमात्मन्! आपको  ब्रह्मा भी नहीं देख सकता है, न आप समाधियों की युक्तियों से समझ में आते हैं। फिर ब्रह्मा के शरीर मन, बुद्धि से रची हुई सृष्टि से उत्पन्न होने वाले हम आपको कैसे जान सकते हैं।   हे प्रभो ! त्रिगुण प्रधान वाले देहधारी आपकी माया से मोहित हो कर जाग्रत और स्वप्नावस्था में केवल विषयों ही को देखते हैं और अन्तरीय अज्ञान के कारण हृदय में बैठे हुए आपको नहीं देख सकते हैं।   ऐसे ज्ञानरूप आपका ध्यान में किस तरह कर सकता हूँ क्योंकि आप तो केवल सनकादिक मुनियों के ही ध्यान में आ सकते हैं, जिनके माया, गुण, भेद और मोह स्वाभाविक ही नष्ट हो गये हैं। हे शान्तस्वरूप ! आप नाम और रूप माया, गुण, कर्म और चिन्हों से दुर्धेध हैं। आप सत् और असत् दोनों से पृथक हैं आपने तो केवल ज्ञानोपदेश के लिये ही यह देह धारण किया है।   हे पुराण पुरुष ! आपको नमस्कार करता हूँ। आपने अपनी माया से यह लोक ऐसा रचा है कि मनुष्य कर्म, लोभ, ईर्ष्या और मोह में चित्त को फँसाकर गृह आदि वस्तुओं में ही यथार्थता जानता है।   हे सर्व धूतान्तर्यामिन् ! आपके दर्शन से आज कामनारूप कर्म और इन्द्रियों के वशीभूत हमारे सब बन्धन कट गये।"   श्रीशुकदेवजी कहने लगे कि कपिल भगवान इस प्रार्थना को सुन अनुग्रह कर अंशुमान् से बोले - हे पुत्र ! तू अपने बाबा के इस घोड़े को ले जा और ये तेरे काकाओं की भस्म है। यह गङ्गाजल के योग्य है और किसी तरह से नहीं तरेंगे। तब अंशुमान् कपिल देव की परिक्रमा दे हाथ जोड़ शिर नवाय घोड़े को ले आया और सगर ने उस पशु से अवशिष्ट यज्ञ समाप्त किया । तदनन्तर इस लोक और परलोक के भोगों की इच्छा के विषय में निस्पृह और अविद्य रूप बन्धन से रहित राजा सगर अंशुमान को राजगद्दी दे और और्व ऋषि के उपदेश के अनुसार परम गति को प्राप्त हो गया।                                    रामायण के अनुसार इक्ष्वाकु वंश में सगर नामक प्रसिद्ध राजा हुए। वह भगवान राम और भगीरथ के पूर्वज थे। राजा सगर की दो रानियां थीं- केशिनी और सुमति। लेकिन राजा सगर की कोई संतान नहीं थी, जिसकी वजह से वह काफी दुखी रहते थे। एक दिन राजा सगर रानियों समेत हिमालय पर संतान प्राप्ति के लिए तपस्या करने चले गए।   ऋषि की बात मानकर राजा सगर अपनी दोनों रानियों के साथ हिमालय पर्वत पर जाकर पुत्र कामना से तपस्या करने लगे। भगवान ब्रह्माजी के मानस पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी को साठ हजार अभिमानी पुत्र होंगे और दूसरी रानी से एक पुत्र होगा जो वंश को आगे चलाएग।   वरदान के कुछ दिन बाद रानी सुमति ने तूंबी के आकार के एक गर्भ-पिंड को जन्म दिया। जिसके फटने पर साठ हजार पुत्रों का जन्म हुआ। जबकि केशिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। जब सारे पुत्र युवा हो गए तो राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। उन्होंने अपने साठ हजार पुत्रों को अश्वमेध के घोड़े की सुरक्षा में नियुक्त कर दिया।


नवीन सुख सागर 

श्रीमद भागवद पुराण  आठवां अध्याय [स्कंध ९] ( सागर वंश का विवरण)


दोहा-अष्टममें रोहितास को वर्णों वंश उचार।

भये सगर से जितन कुल कियो मुति छार ॥ ६॥


श्रीशुकदेवजी बोले---


 रोहितास के हरित हरित के चंप हुआ जिसने चंपा पुरी बसाई थी। उस चंप से सुदेव और सुदेव से विजय हुआ। विजय के भरुक भएक के वृक के बासुक हुआ, इस बाहुक की भूमि शत्रुओं ने छीन ली थी इसलिये अपनी स्त्री को साथ ले वन को चला गय। जब यह वृद्ध होकर मरा तब इसकी रानी सती होने लगी किन्तु इसको गर्भवती देखकर और्व ऋषि ने सती होने से रोक किया। अपनी सपत्नी को गर्भवती समझ अन्य रानियों ने भोजन में विष मिलाकर दे दिया तब वह बालक विष सहित उत्पन्न हुआ। इसी से उसका नाम सगर पड़ गया।

यह सगर चक्रवर्ती हुआ इसके पुत्त्रों ने सगर बनाया था इसने अपने गुरु की आज्ञा से तालजंघ यवन, शक, हैहय बर्बरों का बध किय। कितनों ही के हाथ पैर तोड़कर उनकी आकृति बिगाड़ दी, कितनों ही के सिर मुड़ाय दिये और दाढ़ी मूछ रहने दीं। कितनों ही के बाल खुले छोड़ दिये। और ऋषि के कहने से अश्वमेध यज्ञों से सम्पूर्ण वेदस्वरूप हरि का भजन किया। यज्ञ के लिये इसने जो घोड़ा छोड़ा था उसको इन्द्र हर कर ले गया। पिता के आज्ञाकारी सगर के साठ हजार पुत्र बड़ा अहङ्कार करके घोड़े को ढूँढ़ने के लिये निकले और शस्त्रों से पृथ्वी खोदने लगे खोदते २ पूर्वोत्तर दिशा में कपिलदेव के पास घोड़े को बंधा देखा और कहने लगे कि यही चोर हैं। अब आंख बन्द करके बैठ गया है। और वे शस्त्रों को उठाकर मारो २ कहते हुए दौड़े।
तब मुनि ने आंख खोली जिनका चित्त इन्द्र ने हर लिया था। और कपिल जी के अपराध से जो मृतक समान हो गये थे ऐसे वे साठ हजार पुत्र ऋषि की दृष्टि पड़ते ही तत्क्षण भस्म हो गये।


यह बात कि सगर के पुत्र कपिल देवजी के क्रोध से भस्म हों ..... ऐसा ठीक नहीं है। जिस कपिल मुनि ने इस संसार में सांख्यमय ऐसी दृढ़ नौका रची है जिस पर चढ़कर मुमुक्ष जन मृत्यु के मार्गरूप समुद्र से पार उतर जाते हैं उन कपिल देवजी को कोई पराया और अपना कैसे हो सकता हैं?

सगर की केशिनी नाम दूसरी रानी थी इनके असमंजस नाम पुत्र हुआ और इसके अंशुमान हुआ यह अंशुमान अपने बाबा का बड़ा आज्ञाकारी था। असमंजस पूर्व जन्म में योगी था किन्तु कुसंग से इसका योग भ्रष्ट हो गया था। इसलिये इस जन्म में यह ऐसे निन्दित कर्म करता था कि जो जाति वालों के लिये अप्रिय लगते थे। यह खेलते कर्म बालकों को उठाकर सरयू में फेंक दिया था। इन कुलक्षणों के कारण पिता ने इसे निकाल दिया तब अपने योग बल से उसने उन बालकों को फिर से प्रगट कर दिया जिसको डुबाया था। अयोध्यावासियों ने जब अपने बालकों को फिर आते हुए देखा तब बड़े विस्मित हुए और राजा भी यह सोच कर कि मैंने ऐसे समर्थ्य वाले पुत्र को वृथा निकाल दिया बड़ा पश्चाताप करने लगा ।



अपने बाबा के कहने से अंशुमान घोड़े को ढूँढ़ने के लिये निकला और  वह उसी मार्ग में होकर गया जो उसके काकाओं ने खोदा था।

वहां आकर भस्म की ढेरी के पास उसने घोड़े को बंधा हुआ देखा । वह कपिल मुनि को बैठा हुआ देख हाथ जोड़ शिर नवाय एकाग्र चित्त से स्तुति करने लगा----

"हे परमात्मन्! आपको  ब्रह्मा भी नहीं देख सकता है, न आप समाधियों की युक्तियों से समझ में आते हैं। फिर ब्रह्मा के शरीर मन, बुद्धि से रची हुई सृष्टि से उत्पन्न होने वाले हम आपको कैसे जान सकते हैं।

हे प्रभो ! त्रिगुण प्रधान वाले देहधारी आपकी माया से मोहित हो कर जाग्रत और स्वप्नावस्था में केवल विषयों ही को देखते हैं और अन्तरीय अज्ञान के कारण हृदय में बैठे हुए आपको नहीं देख सकते हैं।

ऐसे ज्ञानरूप आपका ध्यान में किस तरह कर सकता हूँ क्योंकि आप तो केवल सनकादिक मुनियों के ही ध्यान में आ सकते हैं, जिनके माया, गुण, भेद और मोह स्वाभाविक ही नष्ट हो गये हैं।
हे शान्तस्वरूप ! आप नाम और रूप माया, गुण, कर्म और चिन्हों से दुर्धेध हैं। आप सत् और असत् दोनों से पृथक हैं आपने तो केवल ज्ञानोपदेश के लिये ही यह देह धारण किया है।

हे पुराण पुरुष ! आपको नमस्कार करता हूँ। आपने अपनी माया से यह लोक ऐसा रचा है कि मनुष्य कर्म, लोभ, ईर्ष्या और मोह में चित्त को फँसाकर गृह आदि वस्तुओं में ही यथार्थता जानता है।

हे सर्व धूतान्तर्यामिन् ! आपके दर्शन से आज कामनारूप कर्म और इन्द्रियों के वशीभूत हमारे सब बन्धन कट गये।"

श्रीशुकदेवजी कहने लगे कि कपिल भगवान इस प्रार्थना को सुन अनुग्रह कर अंशुमान् से बोले - हे पुत्र ! तू अपने बाबा के इस घोड़े को ले जा और ये तेरे काकाओं की भस्म है। यह गङ्गाजल के योग्य है और किसी तरह से नहीं तरेंगे। तब अंशुमान् कपिल देव की परिक्रमा दे हाथ जोड़ शिर नवाय घोड़े को ले आया और सगर ने उस पशु से अवशिष्ट यज्ञ समाप्त किया । तदनन्तर इस लोक और परलोक के भोगों की इच्छा के विषय में निस्पृह और अविद्य रूप बन्धन से रहित राजा सगर अंशुमान को राजगद्दी दे और और्व ऋषि के उपदेश के अनुसार परम गति को प्राप्त हो गया।

अगला अध्याय 
▲───────◇◆◇───────▲


रामायण के अनुसार इक्ष्वाकु वंश में सगर नामक प्रसिद्ध राजा हुए। वह भगवान राम और भगीरथ के पूर्वज थे। राजा सगर की दो रानियां थीं- केशिनी और सुमति। लेकिन राजा सगर की कोई संतान नहीं थी, जिसकी वजह से वह काफी दुखी रहते थे। एक दिन राजा सगर रानियों समेत हिमालय पर संतान प्राप्ति के लिए तपस्या करने चले गए।

ऋषि की बात मानकर राजा सगर अपनी दोनों रानियों के साथ हिमालय पर्वत पर जाकर पुत्र कामना से तपस्या करने लगे। भगवान ब्रह्माजी के मानस पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी को साठ हजार अभिमानी पुत्र होंगे और दूसरी रानी से एक पुत्र होगा जो वंश को आगे चलाएग।

वरदान के कुछ दिन बाद रानी सुमति ने तूंबी के आकार के एक गर्भ-पिंड को जन्म दिया। जिसके फटने पर साठ हजार पुत्रों का जन्म हुआ। जबकि केशिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। जब सारे पुत्र युवा हो गए तो राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। उन्होंने अपने साठ हजार पुत्रों को अश्वमेध के घोड़े की सुरक्षा में नियुक्त कर दिया।



The events, the calculations, the facts aren't depicted by any living sources. These are completely same as depicted in our granths. So you can easily formulate or access the power of SANATANA. Jai shree Krishna.🙏ॐ 

▲───────◇◆◇───────▲

 श्रीमद भागवद पुराण वेद व्यास जी द्वारा रचित एक मुख्य ग्रंथ है। एक बार सुनने या पढ़ने से किसी भी ग्रंथ का सार अंतकरण में बैठना सम्भव नहीं। किंतु निरंतर कथाओं का सार ग्रहण करने से निश्चय ही कृष्ण भक्ति की प्राप्ति होती है। इसीलिए धर्म ग्रंथों का निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।

 Preserving the most prestigious, सब वेदों का सार, प्रभू विष्णु के भिन्न अवतार...... Shrimad Bhagwad Mahapuran 🕉 For queries mail us at: shrimadbhagwadpuran@gmail.com Suggestions are welcome!
Previous Post Next Post