सहज भक्ति क्या है?
विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण]
श्रीमद भागवद पुराण [introduction]
• श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]
• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]
श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६
सहज भक्ति क्या है?
जो काम स्वयं, हमारी भौतिक सामर्थ्य से हो जाये। अर्थात जिसमे ज्यादा खुद पर काम ना करना पड़े, मन न मारना पड़े, तकलीफ न हो, बस मन में आया और कर दिया। उसे सहज कहा जाता है।
और ये सहज भक्ति की ये अवस्था तब प्राप्त की जाती है, जब मन के सब वैर भाव मारे जाये। मन की अशुधियाँ, विकृतियाँ समाप्त हो जाये। कुछ अधिक पाने की आशा ना हो। त्याग की भावना सुदृढ़ हो, तब सहज मार्ग मिलता है।
क्यूँ की उस अवस्था में मनुष्य अपनी भौतिक ज़रूरतो से पार उठ चुका होता है। फिर वह भौतिक वस्तुओं पर समय नष्ट नहीं करता और लालसाएं समाप्त होने पर, प्रभू भक्ति सहज हो जाती है।
ये अवस्था प्राप्त करना कठिन है। शुरुआत में हमारी ज़रूरते हमें इस मार्ग पर ना चलने देंगी, पर ऐसे चलते हुए, प्रभू भक्ति करते हुए, हमारी सामर्थ्य एक दिन अवश्य हमें उस शिखर तक पहुंचा देंगी।
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