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Showing posts from May, 2021

श्रीमद भागवद पुराण पाचवाँ अध्याय [स्कंध ६] ( दक्ष द्वारा नारद को अभिश्राप )

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विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ नवीन सुख सागर श्रीमद भागवद पुराण पाचवाँ अध्याय [स्कंध ६] ( दक्ष द्वारा नारद को अभिश्राप ) दो०-कूट वचन नारद कहे, सुत संपूर्ण नसाय। दियौ शाप देवर्षि को, दक्ष क्रोध उर लाय ॥ श्री शुकदेवजी बोले-हे परीक्षत ! विष्णु भगवान के जाने के पश्चात् उनका कहा शिरधार दक्ष ने पंचजन की कन्या अविसनी के साथ अपना विवाह कर लिया। जिसमें दक्ष प्रजापति ने हर्यश्व नाम के दशहजार (१००००) पुत्र उत्पन्न किये। दक्ष प्रजापति ने अपने उन सब पुत्रों को सृष्टि उत्पन्न करने की आज्ञा प्रदान की, तब वे सब हर्यश्व नाम वाले दक्षपुत्र पिता की आज्ञा की मानकर जहाँ सिन्ध नदी समुद्र में मिलती है, उस संगम के निकट नारायण सर तीर्थ में सृष्टि उत्पन्न करने की इच्छा से तपस्या करने लगे। तब वहाँ नारदजी ने उन्हें तप करने को उद्यत देखकर कहा- हे हर्यश्व

श्रीमद भागवद पुराण चौथा अध्याय [स्कंध ६] ( दक्ष द्वारा हंस गुहा के स्तवन द्वारा हरि की आराधना )

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वैष्णव धर्म का वर्णन॥ श्रीमद भागवद पुराण तीसरा अध्याय [स्कंध ६]

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कैसे करता है श्री हरि का नाम पापों का उधार। श्रीमद भागवद पुराण॥

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नवीन सुख सागर श्रीमद भागवद पुराण -छठवाँ स्कन्ध प्रारम्भ॥अजामिल की मोक्ष वर्णन विषय

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भगवान शेषनाग की महिमा का गुणगान॥संकर्षण देव (शेष नाग)का निवारण॥

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पृथ्वी और अन्य सभी पाताल लोकों का विधिवत वर्णन। गृहण क्या है?

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विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ पृथ्वी और अन्य सभी पाताल लोकों का विधिवत वर्णन। गृहण क्या है?श्रीमद भागवद पुराण चौबीसवां अध्याय [स्कंध५] (अतलादि सप्त अधोलोक वर्णन) दो०- राहू आदि स्थान का निर्णय कहा सुनाय। चौबीसवें अध्याय में, भाषा करी बनाय || श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षत ! सूर्य से नीचे दस हजार योजन दूरी पर राहू घूमते है। सूर्य का विस्तार मंडल दस हजार योजन का है, और चन्द्रमा का विस्तार मंडल बारह हजार योजन का है। राहू का विस्तार मंडल तेरह हजार योजन का है। अमावस्या तथा पूर्णिमा को सूर्य या चंद्रमा राहू की गति के सम सूत्र पर आ जाते हैं, जिस कारण राहू की छाँह इन पर जितने समय तक पड़ती है उस समय को गृहण कहते हैं। अर्थात् यों कहिये कि सूर्य या चन्द्रमा के तेज से जब राहू गृह दिखाई देता है तो वह ग्रहण होता है। क्

क्या है विष्णु भगवान का सर्वदेवमय स्वरूप।। श्रीमद भागवद पुराण अध्याय २३ [स्कंध ५]

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