According to you which is the most practical chapter of Shrimad Bhagwad Mahapuran?

This particular chapter of Shrimad Bhagwad Mahapuran has the most powerful impact on my life.

According to you which is the most practical chapter of Shrimad Bhagwad Mahapuran?


I have read the whole puran as many as 4 times till date and still revising it everyday. As the only thing that helped me start my dead life again, as a new birth. 


Hope you all stream the same power out of it as i did. This puran almost energized me as no other thing could have. 

But after reading it for 4 times I won't say that I have totally remembered it. But I completely know me and my powers. 


You will find the real path to life and how to keep yourself safe from ADHARAM (अधर्म)


Here's the chapter to my rebirth: 


श्रीमद भागवद पुराण *छब्बीसवां अध्याय * [स्कंध ५]कहाँ जाता है मनुष्य मरने के बाद? नरक लोक में जीवात्मा।।

(पाताल स्थित नरक का वर्णन ) Where does the soul goes in between reincarnations?

दो०-पापी फल पावें जहां, देय दूत यम त्रास।

छब्बीसवें अध्याय में, वरणों नरक निवास।।




श्री शुकदेव जी के वचन सुन कर परिक्षित ने पूछा-हे मुने ! ईश्वर ने यह सब सृष्टि एकाकार ही क्यों नहीं रची अर्थात यह सब सृष्टि परमात्मा ने अनेक प्रकार की क्योंकर निर्माण की है सो कृपा कर मुझे सुनाओ । श्री शुकदेव बोले-हे परीक्षित! कर्त्ता की इच्छा से श्रद्धा में तीन प्रकार का भेद होने से कर्म की गति भी अलग-अलग न्यूनाधिक होती है । सत्व गुण की श्रद्धा से कर्म करने वाले कर्ता को सुख, तथा रजोगुण की श्रद्धा से कर्म करने वाले कर्ता को सुख और दुःख दोनों तथा तमोगुण की श्रद्धा से कर्म करने वाले कर्ता को दुख ही केवल प्राप्त होता है। शास्त्रों में जिसको निषेध कहा है उसी को अधर्म कहते हैं। अतः उन्ही अधम कर्मो के करने को ही अधर्म कहते हैं। उन पापी जनों को नरक की गति मिलती हैं। सो हे राजन! हम तुम्हारे सामने उन्हीं मुख्य-मुख्य नरकों को वर्णन करते हैं । सो तुम उन्हें ध्यान देकर सुनो।

नरकों का सम्पूर्ण विवरण

अवस्थति




हे परीक्षित ! दक्षिण दिशा में पृथ्वी के नीचे और जल के ऊपर है। अर्थात यह नरक सुमेरु पर्वत से निन्यावे योजन दक्षिण धरती से नीचे पानी के ऊपर है। चारों वर्ण के दिव्य पितर उस नरक का दुख देख कर अपने परिवार वालों को मना करने लिये उसके द्वार पर बने रहते हैं। जिसमें हमारे परिवार का कोई ऐसे कर्म न करे कि उसे नरक में आना पड़े। यहाँ पितरों का राजा धर्मराज अपने दूतों के द्वारा मृत आत्माओं के लान पर चित्रगुप्त द्वारा उनके कर्मों के दोष गुणों को विचार कर उसी के अनुसार उसे दण्ड प्रदान कराते हैं ।

२८ नारकों के नाम


हे राजन! अष्ठाईस नरक हैं, सो उस के नाम ये हैं उन्हें तुम श्रवण करो
 १-तामिस्त्र, २ अंधतामिस्र, ३-रौरव, ४-महा रौरव, १-कुम्भी पाक, ६-कालसूत्र, ७-असिपत्रवन, ८-शूकर मुख, ९-अंधकूप, १०- कृमि भोजन, ११-संदेश, १२-तप्त सूर्मि १३-वज्रकंटक, शाल्मली, १४-वैतरणी, १५-पूयोद, १६-प्राणरोध, १७-विशसन, १८-लाला भक्षण, १९-सारभयादन, २०-अवीचि, २१-अय:पान २२-क्षार कदर्म, २३ रक्षोगण भोजन, २४-शूलप्रोत, २५-दंदशूक,२६-अवट निरोधन, २७-पर्यावर्तन, २८-सूचीमुख, यह २८ नर्क हैं।

 जिनमें भिन्न-भिन्न प्रकार के कष्ट प्राणी को उसके कर्मों के अनुसार प्राप्त होते हैं । हे परीक्षित ! अब हम वह कहते हैं कि किन-किन कर्मों के करने से मनुष्य किस-किस नरक में जाता है, और क्या-क्या कष्ट भोगता है। 


𓆉︎जो परायण धन, स्त्री, पुत्र आदि का हरण करते हैं, वे यमदूतों द्वारा तामिस्त्र नरक में डाल दिये जाते हैं। 


𓆉︎जो पुरुष किसी पुरुष को धोखा देकर उसकी स्त्री के साथ संभोग करता हैं वह अंधतामिस्र नरक में पड़ता है, जिसमें अनेक पीड़ा सह कर बुद्धि रहित हो अंधा हो जाता है। 



𓆉︎जो प्राणी मोह के कारण अपना-अपना कह कर तथा मैं-मैं कर हर बात में अपने लाभ के लिये तथा अपने कुटुम्ब के लाभ के लिये दूसरी से कपट कर धर्म का विचार न कर कुटुम्ब का पालन करता है, और प्राणियों से द्रोह करता है वह प्राणी रौरव नरक में पड़ता है, जहाँ उसके द्वारा ठगे हुये प्राणी रूप नामक दारुण प्राणी बनकर जो कि सर्प से भी अधिक कर होते हैं वे पलटा लेकर ताड़ना देते हैं । 


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