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श्रीमद भगवद पुराण नवां अध्याय [स्कंध४]ध्रुव चित्र।।अधर्म की वंशावली।।द्वादशाक्षर मत्र

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श्रीमद भगवद पुराण नवां अध्याय [स्कंध४] (ध्रुव चित्र) दोहा-हरि भक्त ध्रुव ने करी जिस विधि हृदय लगाय। सो नोवें अध्याय में दीनी कथा सुनाय ॥ श्री शुकदेव जी बोले-हे परीक्षित ! फिर मैत्रेय जी बोले हे विदुर जी ! इस प्रकार शिव पार्वती ने विवाह का प्रसंग कहकर हमने आपको सुनाया। अब हम तुम्हें ध्रुव चरित्र कहते हैं सो ध्यान पूर्वक सुनिये। अधर्म की वंशावली।। सनक, सनंदन, सनातन, सनत्कुमार, नारद जी, ऋभु, हंस, आरूणी, और यति आदि ब्रह्मा जी के पुत्रों ने नैष्टिक प्राचार्य होने के लिये गृहस्थाश्रम नहीं किया। अतः उनके द्वारा कोई वंशोत्पत्ति नहीं हुई। हे विदुर जी! बृह्मा जी का एक पुत्र अधर्म भी हुआ, उसकी मृषा नामा पत्नी से दम्भ नाम पुत्र और माया नाम कन्या उत्पन्न हुई। इन दोनों बहन भाई को पति पत्नी रूप बना कर मृत्यु ने गोद ले लिया। तब दम्भ की पत्नी माया से लोभ नाम का पुत्र और शठता नाम की एक कन्या उत्पन्न हुई तब वे दोनों लोभ और शठता स्री पुरुष हुए। जिससे शठता में लोभ ने क्रोध नाम के पुत्र और हिंसा नाम की कन्या को उत्पन्न किया । तब वे दोनों भी पति पत्नी हुई। जिससे हिंसा नाम स्त्री में क्रोध ने काल

श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ८[स्कंध४]पार्वती जी के रूप में सती का जन्म लेना तथा शिव से विवाह होना।।

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श्रीमद भागवद पुराण*आठवां अध्याय* [स्कंध४] (पार्वती जी के रूप में सती का जन्म लेना तथा शिव से विवाह होना)  दो.-पार्वती कहै सती ने ली जिमि अवतार। सो अष्टम अध्याय में वर्णित कथा उचार ।। श्री शुकदेव मुनि बोले-हे परीक्षित ! इस प्रकार दक्ष के यज्ञ की कथा कह कर मेत्रैय बोले-हे विदुर ! दक्ष प्रजापति की कन्या सती जी अपने शरीर को छोड़ कर हिमालय की स्त्री मेंना के उदर से प्रगट हुई। फिर भी वह पार्वती निरंतर भजन करके महादेव पति को पुनः इस प्रकार से प्राप्त हुई कि जिस प्रकार प्रलय काल से सोई हुई मायादि शक्ति ईश्वर को प्राप्त होती है। विदुर जी बोले-हे मैत्रेय जी ! आप उन जगदंबा पार्वती जी के जन्म का वृतांत पूर्ण रूप से सुनाईये कि फिर किस प्रकार से वे महादेव जी को पति रूप में प्राप्त कर सकीं। तब श्री मैत्रेय जी ! बोले हे विदुर जी ! जिस प्रकार पार्वती जी का हिमाचल की स्त्री मैनावती से जन्म हुआ जिस प्रकार तप करके भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त किया, सो वह सब कथा आपको सुनाता हूँ, आप इसे चित्त लगा कर सुनो। जिस समय दक्ष के यज्ञ में सती जी ने अपनी देह का त्याग किया था, उस समय सती जी ने अपने हृदय मे

श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४]।।प्रजापति दक्ष की कथा।।

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  श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४] (दक्ष का यज्ञ विष्णु द्वारा सम्पादन) दोा-जैसे दिया विष्णु ने दक्ष यज्ञ करवाई। सो सप्तम अध्याय में वर्णी कथा बनाय।। श्री शुकदेव जी कहने लगे-हे परीक्षित ! विदुर जी से मेत्रैय ऋषि बोले कि, हे विदुर! जब शिवजी से ब्रह्मा जी ने इस प्रकार कहा तो भगवान शंकर जी ने कहा- हे ब्रह्माजी! सुनिये ! मैं उन बाल बुद्धियों के अपराध को न तो कुछ कहता हूँ और न कुछ चिन्ता करता हूँ। क्योंकि वे अज्ञानी पुरुष ईश्वर की माया से मोहित रहते हैं। अतः इसी कारण मैंने इन लोगों को उचित दण्ड दिया है। आप चाहें कि दक्ष का यही शिर फिर से हो जावे तो वह किसी प्रकार नहीं हो सकेगा । क्योंकि दक्ष का वह शिर तो यज्ञ की अग्नि में जल गया हैं। अतः ऐसा हो सकता है कि दक्ष का मुख बकरे का लगा दिया जाय । तथा भगदेवता के नेत्रों की कहते हो कि वह फिर होवें सो वह भी नहीं होगा, अतः इसके लिये यह है कि भगदेवता अपने भाग को मित्र देवता के नेत्रों से देखा करे। अब रही पूषा देवता के दाँतों की सो वह यजमान के दाँतों से पिसा हुआ अन्न भोजन किया फरें। अब उस यज्ञ में पत्थरों अथवा अस्त्र-शस्त्रों से जिन लोगों के

राजा परीक्षित का कलयुग को अभय देना।। कलयुग के निवास स्थान।।

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  -  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय  -  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।   -  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।  -  ॐ विष्णवे नम:   - ॐ हूं विष्णवे नम:  - ॐ आं संकर्षणाय नम:  - ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:  - ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:  - ॐ नारायणाय नम:  - ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।।  ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ७ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ८ परीक्षित का भूमि और धर्म को आश्वासन और कलियुग के वास

तृतीय स्कंध श्रीमद भागवद पुराण तीसरा अध्याय।। यादव कुल का नाश।।

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  ।। श्री गणेशाय नमः।। -  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय  -  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।   -  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।  -  ॐ विष्णवे नम:   - ॐ हूं विष्णवे नम:  - ॐ आं संकर्षणाय नम:  - ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:  - ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:  - ॐ नारायणाय नम:  - ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।।  ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ धर्म कथाएं Bhagwad puran विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ७ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ८ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ९

श्रीमद भागवद पुराण* छटवां अध्याय [स्कंध४]।।शंकर जी से प्रजापति दक्ष को पुनः जीवित।।

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श्रीमद भागवद पुराण* छटवां अध्याय [स्कंध४] ब्रह्मा सहित सब देवताओं को शंकर जी से प्रजापति दक्ष को पुनः जीवित करने की प्रार्थना करना दोहा-देवन किन्ही प्रार्थना, ज्यों शिव जी सों आय। सों छट्वे अध्याय में, कही कथा दर्शाया॥  श्री शुकदेव जी कहने लगे-हे परीक्षित! इस प्रकार विदुर जी से मेत्रैय जी कहने लगे-कि हे विदुर जी ! वीरभद्र ने जब दक्ष को मार डाला और भगदेवता की आँखों को निकाल लिया, तथा पुषादेव के दांत उखाड़ लिये, और भृगु जी की दाड़ी मूछों को उखाड़ लिया, तब सारी यज्ञशाला हवन सामग्री को विध्वंस कर दिया, और जब वह कैलाश पर्वत पर लौट गया तो, वहाँ उपस्थित देवता और ऋषि-मुनि ऋत्विज आदि सब ब्राह्मणों एवं सांसदों सहित अत्यन्त भयमीत हो वृह्म जी के निकट आये और जिस प्रकार वहाँ जो घटना व्यतीत हुई थी वह सब ज्योंकी त्यों कह सुनाई। क्यू ब्रह्मा जी एवं नारायण जी दक्ष के यज्ञ में नही गये थे? हे विदुर जी! यदि कोई यह शंका उत्पन्न करे कि क्या ब्रह्माजी दक्ष के यज्ञ में नहीं गये थे। सो जानना चाहिये कि इस होनहार को ब्रह्मा जी और श्री नारायण जी पहले से ही जानते थे, यही कारण था कि वह पहले से ही दक्ष के यज्ञ में नह