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श्रीमद भागवद पुराण उन्तीसवां अध्याय [स्कंध४]।।नारद जी द्वारा जनम से मृत्यु के उपरांत का पूर्ण ज्ञान।।

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।। श्री गणेशाय नमः।। -  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय  -  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।   -  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।  -  ॐ विष्णवे नम:   - ॐ हूं विष्णवे नम:  - ॐ आं संकर्षणाय नम:  - ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:  - ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:  - ॐ नारायणाय नम:  - ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।।  ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥  ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ धर्म कथाएं Bhagwad puran विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५] श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ७ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ८ श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ९ Ve

पुरंजन का स्त्रीत्व को प्राप्त होना तथा ज्ञानोदय में सुक्ति लाभ

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विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] https://anchor.fm/shrimad-bhagwad-mahapuran देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः। नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये। जय श्री राम🙏 श्रीमद भागवद पुराण अध्याय २८ [स्कंध ४] ( पुरंजन का स्त्रीत्व को प्राप्त होना तथा ज्ञानोदय में सुक्ति लाभ) दोहा-भये पुरंजन नारि तब, नारि मोह वश आय । सो वर्णित कीनी कथा, अट्ठाईस अध्याय ।। नारदजी बोले हे राजन् ! पीछे हम वर्णन कर चुके हैं कि मृत्यु ने नाग की बहिन बनकर पति पाने को कहा था सो वही मृत्यु नाम की कन्या प्रज्वर की सहायता से पुरंजन की नगरी में प्रवेश कर गई और उसने उसकी नगरी के सब दरवाजों को खोल दिया। तब उन फाटकों के खुलने से वे शत्रु सैनिक नगर में प्रवेश कर गये और प्रजा को अनेक प्रकार की पोड़ा पहुँचाने लगे। जब पुर जन ने अपनो नगरी की प्रजा को पीड़ित देखा तो वह अभिमानी पुरंजन राजा कुटुंब की ममता से व्याकुल ह

श्रीमद भागवद पुराण* २७ अध्याय [स्कंध४] (पुरंजन का आत्म विस्मरण)

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विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] https://anchor.fm/shrimad-bhagwad-mahapuran श्रीमद भागवद पुराण* सत्ताईसवां अध्याय *[स्कंध४] (पुरंजन का आत्म विस्मरण) दो०-स्त्री के वश फंस विपत्ति, पाई ज्यों अधिकाय। सो सब यहि वर्णन कियौ, सत्ताईस अध्याय।। नारद जी बोले- हे राजा प्राचीन बर्हि ! जब राजा पुरंजन ने अपनी स्त्री से ऐसे बचन कहे तो पुरंजनी ने भी अपने मन में यह जान लिया कि वह राजा अर्थात् उसका पति उसके प्रेम जाल में भली प्रकार बंध चुका है। इसलिये उसने भी राजा के प्रति अनेक प्रकार के मधुर बचन कहे और अपने सुन्दर कटाक्षों से राजा को मोहित कर के अपने वश में कर लिया । जब राजा वशीभूत हो गया तो वह स्त्री राजा के साथ स्वयं रमण करती और राजा को रमण कराती समय को व्यतीत करने लगी। राजा पर जो भी अपनी स्त्री के मोह जाल में इस प्रकार फस गया, कि उसने ज्ञान ध्यान का एक दम त्याग कर दिया और अपनी रानी के साथ लिपट कर कंठ से लगाय विषय

श्रीमद भगवद पुराण २६अध्याय [स्कंध४] (पुर बन के मृगयाञ्चल के स्वरूप और जागरणा वस्था कथन द्वारा संसार वर्णन )

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धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भगवद पुराण छब्बीसवाँ अध्याय [स्कंध४] (पुर बन के मृगयाञ्चल के स्वरूप और जागरणा वस्था कथन द्वारा संसार वर्णन ) दोहा- स्वप्न अौर जागृत समय सन्मति पावहि त्याग। विविधियोनि वर्णन कियो, कथा पूर्ण अनुराग ।। श्री शुकदेव जी बोले-हे राजा परीक्षत ! मैत्रेय जी द्वारा विदुर जी से वर्णित कथा में राजा प्राचीन वहि से नारद जो करते हैं, कि हे राजन! वह शुरवीर राजा पुरंजन¹ एक समय बडे रथ² में जो कि शीघ्र चलने वाला³, और पाँच घोड़ों वाला⁴, जिसके बैंडी और पहिया⁵', था एक जुआ⁶',तीन⁷, वेणु की ध्वजा⁸, ,पाँच वंधन⁹" और पाँच घोड़ो की एक वागडोर¹⁰", जिसका एक ही सारथी¹¹", तथा जिसके बैठने का स्थान¹², दो धुरे¹³ व पाँच¹⁴ प्रकार की गति साथ रूप¹⁵ "पाँच¹⁶ प्रकार की सामिग्री वाले सुवर्ण¹⁷ जटित रथ पर चढकर, सुवर्ण का कवच पहन कर, तथा अक्षय¹⁸ वाणों से भरा तरकस, और बड़ा

श्रीमद भागवद पुराण * पच्चीसवां अध्याय *[स्कंध४] (जीव का विविधि संसार वृतांत)

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अखंड संकल्प प्रचण्ड पुरुषार्थ जब संकल्प अखंड नहीं होता, तब वह विकल्प बन जाता है। धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण * पच्चीसवां अध्याय *[स्कंध४] (जीव का विविधि संसार वृतांत) जिमि विधि होवे संसार यह वृतांत। पच्चीसवें अध्याय में वर्णी कथा सुखांत।। मैत्रेय जी बोले-हे बिदुर जी ! इधर तो यह प्रचेता लोग भगवान का दर्शन करके तथा वर प्राप्त कर के भी तप करने में लगे रहे। उधर राजा प्राचीन वह राज्य तथा कर्म में आसक्त रहा । तब एक दिन उसके यहाँ नारद जी ने आकर कहा-हे राजन्! आप उन कर्मों के द्वारा किस फल के प्राप्त होने की इच्छा करते हो संसार में दुख की हानि और सुख की प्राप्ति होना हो कल्याण नहीं है। नारद जी के ये बचन सुनकर प्राचीन वर्हि ने कहा-है वृह्मन् ! मेरी बुद्धि कर्मों में विधी हुई हैं अतः इसी कारण से मैं मोक्ष रूपी आनंद से अपरिचित हूँ, सो अब आप ही मुझे ऐसा निर्मल ज्ञानोपदेश कीजिये