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श्रीमद भागवद पुराण १९ अध्याय [स्कंध ४] क्यू राजा पृथू ने सौवाँ यज्ञ संपन्न नही किया?

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धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण *उन्नीसवां अध्याय* [स्कंध ४] क्यू राजा पृथू ने सौवाँ यज्ञ संपन्न नही किया? ( पृथु का इन्द्र को मारने को उद्यत होना तब बृह्माजी द्वारा निवाग्ण करना ) दो०-अश्व हरण कियो इन्द्र ने, पृथु की यज्ञ सों आय। सो वर्णन कीयो सकल, उन्नीसवें अध्याय ।। मैत्रेयजी बोले-हे विदुर ! यह सब कार्य करने के पश्चात पृथ् ने सौ अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय करके वृह्ावर्त राजा देश के क्षेत्र में एक साथ दीक्षा नियम धारण किया । तब इन्द्र भयभीत हो यह समझने लगा कि यदि पृथु के सौ यज्ञ पूर्ण हो गये तो मेरा इन्द्रासन ही छिन जायगा ऐसा विचार कर वह कपटी इन्द्र पृथु के तेज को न सह सकने के कारण परम दुखी हो कर यज्ञ में विन्ध करने का उपाय करने लगा । जब पृथ के निन्यानवें अश्वमेध यज्ञ पूरे हो गये और सौवाँ अश्वमेध यज्ञ करके पृथु जी महाराज यज्ञ पति भगवान का पूजन करने लगे तो इन्द्र ने

श्रीमद भगवद पुराण *१८ अध्याय * [स्कंध ४] कामधेनु रूपी पृथ्वी का दोहना

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धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] • श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] प्रथमहिं नाम लेत तव जोई । जग कहं सकल काज सिद्ध होई ॥ सुमिरहिं तुमहिं मिलहिं सुख नाना । बिनु तव कृपा न कहुं कल्याना ॥ नित्य गजानन जो गुण गावत । गृह बसि सुमति परम सुख पावत ॥ जन धन धान्य सुवन सुखदायक । देहिं सकल शुभ श्री गणनायक ॥ ༺꧁ #जय_श्री_गणेश  ꧂ ༻श्री_गणेश_जी के दर्शन से आपकी मनोकामना पूर्ण हो और आप सदा स्वस्थ रहें।༻ 卐°॰•~ॐ~•॰°॥जयश्रीराम ॥°॰•~ॐ~•॰°卐 श्रीमद भगवद पुराण * अठारहवाँ अध्याय * [स्कंध ४] ( कामधेनु रूपी पृथ्वी का दोहना) दोहा-जिस प्रकार पृथु ने दुही, पृथ्वी रूपी गाय। अष्टम दस अध्याय में, कही कथा समझाय॥ श्री शुकदेव जी बोले- हे परीक्षत ! श्री मैत्रेय जी बोले-हे विदुर ! जब पृथ्वी ने इस प्रकार कहा तो पृथु ने उसकी बात को मान कर दया का भाव दिखाया, और पृथ्वी से कहा कि अब तू ही बता कि किस प्रकार से फिर सब वस्तुयें प्रकट होंगी। तब हाथ जोड़ कर पृथ्वी बोल

Shree ram ki kavita, kahani (chaand ko hai ram se shikayat)

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धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] *चाँद को भगवान् राम से यह शिकायत है कि दीपवली का त्यौहार अमावस की रात में मनाया जाता है और क्योंकि अमावस की रात में चाँद निकलता ही नहीं है इसलिए वह कभी भी दीपावली मना नहीं* *सकता। यह एक मधुर कविता है कि चाँद किस प्रकार खुद को राम के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर राम से शिकायत करता है* *और राम भी उस की बात से* *सहमत हो कर उसे वरदान दे* *बैठते हैं आइये देखते हैं ।*   *जब चाँद का धीरज छूट गया ।*   *वह रघुनन्दन से रूठ गया ।*   *बोला रात को आलोकित हम ही ने करा है ।*   *स्वयं शिव ने हमें अपने सिर पे धरा है ।* *तुमने भी तो उपयोग किया हमारा है ।*   *हमारी ही चांदनी में सिया को निहारा है ।*   *सीता के रूप को हम ही ने सँवारा है ।*   *चाँद के तुल्य उनका मुखड़ा निखारा है ।* *जिस वक़्त याद में सीता की ,*   *तुम चुपके - चुपके रोते थे ।*   *उस वक़्त तुम्हारे संग में बस ,

श्रीमद भागवद पुराण १७ अध्याय [स्कंध४] (पृथु का पृथ्वी दोहने का उद्योग)

सुविचार।। "दर्पण" जब चेहरे का "दाग" दिखाता है, तब हम "दर्पण" नहीं तोडते, बल्की "दाग" साफ करते हैं | उसी प्रकार,  हमारी "कमी" बताने वाले पर "क्रोध" करने के बजाय अपनी "कमी" को दूर करना ही "श्रेष्ठता"है। धर्म कथाएं विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण सत्रहवां अध्याय [स्कंध४] (पृथु का पृथ्वी दोहने का उद्योग) दोहा-जिमि पृथ्वी दोहन कियो, नृप पृथु ने उद्योग। सत्रहवें अध्याय में वर्णन किया योग। मैत्रेय जी बोले-हे विदुर ! जब बन्दीजन तथा सूतगण, देवता आदि सभी अपने-अपने स्थान को चले गये तो उसके उपरान्त बहुत काल तक विचार करने वाले राजा पृथु ने धर्माअनुसार पृथ्वी पर राज्य किया। पृथु ने अपने राज्य के सभी वर्ण के लोगों को प्रसन्न किया। पृथु ने सभी का उचित सत्कार किया। एक बार पृथु के राज्य में ऐसा हुआ कि संपूर्ण भूमं

श्रीमद भागवद पुराण १६अध्याय [स्कंध४] (पृथु का सूत गण द्वारा सतवन)

सुविचार  जो विद्या केवल पुस्तक में और जो सम्पत्ति दूसरों की मुठी में, वह दोनो ही निरर्थक है।। विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण * सोलहवां अध्याय *[स्कंध४] (पृथु का सूत गण द्वारा सतवन) दोहा- कीयौ सूत गण ने सभी, पृथु की सुयश बखान। सोलहवें अध्याय में, सो सब कियो निदान।। मैत्रेय जी बोले-हे विदुर जी! यद्यपि राजा पृथु ने अपनी बढ़ाई करने से रोकने के लिये सूत मागध बन्दीजनों को मना किया। परन्तु फिर भी वे अनेक प्रकार से स्तुति करते हुये यश का बखान करने लगे। सूतगणों ने कहा-हे पृथु! आपने अपनी माया से अवतार धारण किया है। अन्यथा आप साक्षात नारायण ही हैं। सो हम में आप के अनन्त चरित्र वर्णन करने की सामर्थ्य है। क्योंकि आपका यश चरित्र बखान करने में तो ब्रह्मा आदि की बुद्धि भी भ्रम में पड़ जाती है। हे महाराज पृथु ! आप धर्म करने वाले पुरुषों में सर्व श्रेष्ठ होंगे। आप लोकों की रक्षा करने में

श्रीमद भागवद पुराण १५ अध्याय [स्कंध ४] (पृथु का जन्म एवं राज्याभिषेक )

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विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] श्रीमद भागवद पुराण पन्द्रहवां अध्याय [स्कंध ४] (पृथु का जन्म एवं राज्याभिषेक ) दो०-वेणु वन्श हित भुज मथी, मिलि जुलि सब मुनिराज। पृथु प्रगटित तासों भये, हर्षित भयो समाज।। श्री शुकदेवजी बोले-हैं राजा परीक्षत! इस प्रकार मैत्रेय ने विदुर से कहते हुये कहा-कि विदुर ! उस जांघ से जो कुरूप आकृति वाला पुरुष हुआ उसके कारण वेनु के शरीर से उसके सारे पाप और अधर्म निकल कर निषाद के रूप में हुये। तत्पश्- चात मुनियों ने दूसरा उद्यम किया। उन्होंने फिर वेनु को भुजाओं को मथने आरम्भ कर दिया। जिसके मथने से पृथु नाम का एक पुरुष और बरारोहा अवि नाम की एक कन्या उत्पन्न हुई। यह पृथु साक्षात विष्णु के अंश से हुआ था, और वह कन्या बरारोहा अचि साक्षात लक्ष्मी के अंश से उत्पन्न हुई थी। तब उन मुनियों ने उस वरारोहा अचि का विवाह पृथु से कर दिया, और राजतिलक करके सिंहासन पर पृथु को बिठा दिया। तद नन्तर

श्रीमद भगवद पुराण चौदहवाँ अध्याय[स्कंध४] (वेणु का राज्याभिषेक )

विषय सूची [श्रीमद भागवद पुराण] श्रीमद भागवद पुराण [introduction] •  श्रीमद भागवद पुराण [मंगला चरण] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २] •  श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३] श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४] ~~~~~~~~~~~~~~~~   *प्रभात दर्शन*   ~~~~~~~~ तेरा संगी कोई नहीं   सब स्वारथ बंधी लोइ,   मन परतीति न उपजै   जीव बेसास न होइ।। भावार्थ:-   कोई किसी का साथी नहीं है, सब मनुष्य स्वार्थ में बंधे हुए हैं, जब तक इस बात की प्रतीति-भरोसा मन में उत्पन्न नहीं होता, तब तक आत्मा के प्रति विशवास जाग्रत नहीं होता। अर्थात वास्तविकता का ज्ञान न होने से मनुष्य संसार में रमा रहता है। जब संसार के सच को जान लेता है और इस स्वार्थमय सृष्टि को समझ लेता है, तब ही अंतरात्मा की ओर उन्मुख होकर भीतर झांकता है !   ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~   ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ श्रीमद भगवद पुराण चौदहवाँ अध्याय[स्कंध४] (वेणु का राज्याभिषेक ) दोहा- अंग सुमन जिमि वेनु को, राज्य मिला ज्यों आय। चौदहवें अध्याय में, दिया वृतांत वताय।। मेत्रैय जी द्वारा जब वेनु के शरीर से पृथु जन्म को कहा तो विदुर जी ने पूछा हे ब्रह्मन् !